भारतीय वास्तु शास्त्र के नियम जिस प्रकार एक छोटे घर पर लागू होते हैं ठीक वैसे ही एक बड़ी इमारत, कालोनी, किले, शहर, मन्दिर परिसर आदि पर भी लागू होते हैं । शास्त्र के कुछ नियमो को ध्यान मे रखते हुए हम तिरुपति बालाजी मन्दिर का शिल्प वास्तु शास्त्र के नियम अनुसार देखते हैं आखिर क्यों तिरुपति बालाजी मन्दिर विश्व के ऐसे मन्दिर मे शामिल है जहाँ अत्यधिक मात्रा मे दान और चडावा आता है यह मन्दिर परिसर वास्तु शास्त्र के अधिकांश बड़े और मुख्य नियमो का पालन करता है जिसके चलते यह अत्यधिक मात्रा मे सकरात्मक ऊर्जा से पूरीत है।
यह एक अत्यधिक प्राचीन एवम् भव्य मंदिर है एवं यह मंदिर स्थापत्य कला के लगभग सभी नियमो का पालन करता है । जिसके चलते यह दुनिया के सबसे अधिक धनवान मंदिरों में से एक है संपूर्ण मंदिर परिसर के ईशान में एक बड़ा जलाशय है ईशान में भूमिगत जल तत्व का होना वास्तु शास्त्र के नियम के अनुसार अत्यधिक समृद्धि प्रदान करता है एवं बड़ी मात्रा मे धन देता है मंदिर में मुख्य प्रवेश द्वार ईशान पूर्व का है जो की आध्यात्मिकता और भक्ति को बढ़ावा देता है एवं अत्यधिक मात्रा में धन संपदा लेकर आता है एवं यह एक शुभ प्रवेश द्वार है । बालाजी बाबा की मूर्ति मध्य पश्चिम में होना भी अत्यधिक शुभ स्थिति है जो कि पूर्व मे मुख करते ही है।संपूर्ण परिसर को हम यदि ध्यान से देखें तो इसका ईशान कोण बड़ा हुआ है किसी भी प्रॉपर्टी या वास्तु का ईशान कोण एक निश्चित अनुपात में जब बढ़ जाता है तो यह अत्यधिक शुभ स्थिति मानी जाती है इस मंदिर के दक्षिण,पश्चिम, दक्षिण- पश्चिमी नैरत्य में ऊंचाई लिए हुए कुछ पहाड़ हैं यह भी एक शुभ और सकारात्मक वास्तु स्थिति है जो वास्तु शास्त्र के नियम का पालन करती है इस प्रकार यह प्राचीनतम एवं भव्य मंदिर वास्तु शास्त्र के अधिकांश नियमों का पालन भी करता है एवं अतिरिक्त मात्रा में समृद्ध भी है ।