वास्तु क्या है???
वास्तु का जीवन पर क्या प्रभाव होता है ???
नवगृह भवन में कहा स्थापित है??? और उनके क्या प्रभाव होते है ???
मानव शरीर और ब्रम्हाण्ड पंचतत्वों से बना हुआ है, भवन भी पांच तत्वों का ही सम्मिश्रित स्वरूप है। ब्रम्हाण्ड, मानव शरीर, एंव भवन इन तीनों में स्थित पांच तत्वों का सामंजस्य स्थापित करके खुशहाल जीवन व्यतीत किया जा सकता है। और यह सामंजस्य ही वास्तु कहलाता है...
सूर्यः पूर्व दिशा के स्वामी एंव अग्नि तत्व के कारक है। ये पिता के भी कारक माने जाते हैं। भवन में पूर्व की दिशा का ऊंचा होना या वहां पर दो छत्ती का निर्माण होने से महिलाओं को हड्डी रोग तथा सरकारी कर्मचारियों को आये दिन दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। स्वास्थ्य और सम्मानित जीवन जीने के लिये भवन पर इसका शुभ प्रभाव पड़ना जरूरी है।
चन्द्रः चन्द्र को मन का करक माना जाता है सन्तुलित विचार धारा व शुभता बनायें रखनें में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। यह माता का भी प्रतिनिधित्व करते है। इनके सन्तुलित होने से जातक को भौतिक वस्तुओं की प्राप्ति आसानी से होती है तथा मन की चंचलता खत्म होती है। भवन के वायुवीय कोण में इनकों स्थापित करना शुभ माना जाता है।साथ ही यह समाज में संबंधो का भी प्रतिनिधित्व करता है ...
मंगलः यह अग्नि तत्व के कारक है तथा भवन में दक्षिण दिशा पर इनका विशेष प्रभाव रसोई घर के रूप में होता है, इस कारण रसोई घर के नजदीक, पूजाघर, शौचालय, बाथरूम तथा स्टोर रूम इन तीनों का एक साथ होना किसी बड़े खतरे की सूचना देता है। यह स्थान दूषित होने पर घर के मुखिया को हार्ट अटैक होने की आशंका रहती है। फोर्स व मीडिया से जुड़े लोगो को आये दिन समस्याओं से जूझना पड़ता है। आग्नेय कोण (पूर्व-दक्षिण) में रसोई घर स्थापित करने से मंगल का अमंगलकारी प्रभाव नही पड़ता है।
बुधः यह ग्रह पृथ्वी तत्व का द्योतक है, तथा उत्तर दिशा जो सकारात्मक उर्जा का प्रवाह करती है, इस पर इनका विशेष प्रभाव रहता है। युवा तथा गणितज्ञ होने के कारण इनका छात्रों की शिक्षा एंव बैठक रूम में अधिकार क्षेत्र है, इसलिये इन्हे भी शौचालय, रसोई घर, कबाड़ घर आदि से दूर रखना चाहिये अन्यथा बच्चों की शिक्षा में बाधा एंव परिवार में कलह बनी रहती है।
गुरु: ये आकाश तत्व के कारक है तथा ईशान कोण का प्रतिनिधित्व करते है। भवन की जिस दिशा में पूजन गृह बनेगा वह स्थान इनका अधिकार क्षेत्र हो जायेगा। अतः पूजन गृह ईशान कोण में ही स्थापित करें। यह स्थान दूषित होने से- बुर्जुगों से मतभेद, ससुराल पक्ष से तनाव, आर्थिक तंगी, तथा परिवार के सदस्यों के बीच मतभेद बना रहेगा।
शुक्रः ये चुम्बकत्व आकर्षण का प्रतीक है, तथा आग्नेय कोण (पूर्व-दक्षिण) के स्वामी है। शुक्र ग्रह आसुरों के देवता है, इनका सौन्दर्य तथा भोग विलास की वस्तुओं पर निवास स्थल है। इस स्थान के दूषित होने से शैया सुख में कमी, विदेश यात्रा में बाधायें, महिलाओं के स्वास्थ्य पर धन अधिक व्यय एंव सामाजिक प्रतिष्ठा में कमी आयेगी।
शनिः ये वायु तत्व के कारक है, तथा पश्चिम दिशा पर इनका विशेष प्रभाव रहता है। ये न्याय एंव अनुशासन प्रिय है जिस परिवार में अन्याय, अनुशासन, गंदगी, मदिरा का सेवन, झूठ आदि होगा वहां के सदस्यों को आये दिन कष्ट बना रहेगा। घर की जिस दिशा में बेसमेन्ट, कूड़ा, अंधेरा, कबाड़ आदि होगा उस स्थान पर इनका स्थाई निवास स्थान माना गया है। पश्चिम दिशा के दूषित होने से- स्थान परिवर्तन, यात्रा में दुर्घटना, दाम्पत्य सुख में कमी, नौकरों का भाग जाना, घर में चोरी जैसी समस्यायें बनी रहेगी।
राहु एंव केतुः ये दोनो ग्रह नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम) दिशा के कारक होते है। सीढि़यों पर तथा लम्बी गलियों में इनका विशेष प्रभाव रहता है। ये एनर्जी कारक ग्रह है, कुदरती कुण्डली में अष्टम भाव में वृश्चिक राशि पर विशेष प्रभाव रहता है। इस स्थान के दूषित होने से- दुर्घटना, आत्महत्या, पाइल्स रोग, खून की कमी तथा महिलाओं को गर्भपात की समस्या रहती है।
भवन का निर्माण करते समय इन सभी ग्रहों को सही दिशा में स्थापित करके सकारात्मक उर्जा को प्राप्त किया जा सकता है।
दोषयुक्त वास्तु का उपयोग करने पर जीवन में होने वाली संभावित समस्याए :-