वास्तुशास्त्र जीवन के संतुलन का प्रतिपादन करता है। यह संतुलन बिगड़ते ही मानव एकाकी और समग्र रूप से कई प्रकार की कठिनाइयों और समस्याओं का शिकार हो जाता है। वास्तुशास्त्र के अनुसार पंचमहाभूतों- पृथ्वी ,जल , वायु , अग्नि और आकाश के विधिवत उपयोग से बने आवास में पंचतत्व से निर्मित प्राणी की क्षमताओं को विकसित करने की शक्ति स्वत: स्फूर्त हो जाती है।
वास्तु एक प्राचीन विज्ञान है। हमारे ऋषि मुनियों ने हमारे आसपास की सृष्टि में व्याप्त अनिष्ट शक्तियों से हमारी रक्षा के उद्देश्य से इस विज्ञान का विकास किया। वास्तु का उद्भव स्थापत्य वेद से हुआ है, जो अथर्ववेद का अंग है। इस सृष्टि के साथ-साथ मानव शरीर भी पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से बना है और वास्तु शास्त्र के अनुसार यही तत्व जीवन तथा जगत को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक हैं। भवन निर्माण में भूखंड और उसके आसपास के स्थानों का महत्व बहुत अहम होता है।
भूखंड की शुभ-अशुभ दशा का अनुमान वास्तुविद् आसपास की चीजों को देखकर ही लगाते हैं। भूखंड की किस दिशा की ओर क्या है और उसका भूखंड पर कैसा प्रभाव पड़ेगा, इसकी जानकारी वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों के अध्ययन विश्लेषण से ही मिल सकती है। इसके सिद्धांतों के अनुरूप निर्मित भवन में रहने वालों के जीवन के सुखमय होने की संभावना प्रबल हो जाती है। हर मनुष्य की इच्छा होती है कि उसका घर सुंदर और सुखद हो, जहां सकारात्मक ऊर्जा का वास हो, जहां रहने वालों का जीवन सुखमय हो। इसके लिए आवश्यक है कि घर वास्तु सिद्धांतों के अनुरूप हो और यदि उसमें कोई वास्तु दोष हो, तो उसका वास्तुसम्मत सुधार किया जाए। यदि मकान की दिशाओं में या भूमि में दोष हो तो उस पर कितनी भी लागत लगाकर मकान खड़ा किया जाए, उसमें रहने वालों की जीवन सुखमय नहीं होता। मुगल कालीन भवनों, मिस्र के पिरामिड आदि के निर्माण-कार्य में वास्तुशास्त्र का सहारा लिया गया है।
वास्तु का प्रभाव चिरस्थायी है, क्योंकि पृथ्वी का यह झुकाव शाश्वत है, ब्रह्माण्ड में ग्रहों आदि की चुम्बकीय शक्तियों के आधारभूत सिध्दांत पर यह निर्भर है और सारे विश्व में व्याप्त है इसलिए वास्तुशास्त्र के नियम भी शाश्वत है, सिध्दांत आधारित, विश्वव्यापी एवं सर्वग्राहा हैं। किसी भी विज्ञान के लिए अनिवार्य सभी गुण तर्क संगतता, साध्यता, स्थायित्व, सिध्दांत परकता एवं लाभदायकता वास्तु के स्थायी गुण हैं। अतः वास्तु को हम बेहिचक वास्तु विज्ञान कह सकते हैं।
घर के वास्तु का प्रभाव उसमें रहने वाले सभी सदस्यों पर पड़ता है, चाहे वह मकान मालिक हो या किरायेदार। आजकल के इस महंगाई के दौर में मकान बनाना एक बहुत बड़ी समस्या है। लोग जैसे-तैसे जोड़-तोड़ करके अपने रहने के लिए मकान बनाने हेतु भूखंड खरीद लेते हैं। जल्दबाजी में अथवा सस्ती जमीन के चक्कर में वे बिना किसी शास्त्रीय परीक्षण के भूमि खरीद लेते हैं, और इस तरह खरीदी गई जमीन उनके लिए अशुभ सिद्ध होती है। उस पर बने मकान में रहने वाले पूरे परिवार का जीवन कष्टमय हो जाता है।
आज फ्लैटों का चलन है। ये फ्लैट अनिययिमत आकार के भूखंडों पर बने होते हैं। अब एक छोटे से भूखंड पर भी एक बोरिंग, एक भूमिगत पानी की टंकी व सेप्टिक टैंक बनाए जाते हंै। लेकिन ज्ञानाभाव के कारण मकान के इन अंगों का निर्माण अक्सर गलत स्थानों पर हो जाता है। फलतः संपूर्ण परिवार का जीवन दुखमय हो जाता है।
जनसामान्य की अशिक्षा और वास्तुग्रंथों के संस्कृत में लिखे होने एवं मुद्रण प्रणाली के विकसित न होने के कारण इस शास्त्र की उत्तरोत्तर अवहेलना होगी गयी। विदेशी शासकों के बार-बार हुए आक्रमणों एवं अंग्रेजों के भारत में आगमन के पश्चात् पाश्चात्य सभ्यता के अंधानुकरण में हम अपने समृध्द ज्ञान के भंडार पर पूर्णरूप से अविश्वास कर इसे भ्रामक एवं अंधविश्वास समझने लगे।
भौतिकतावाद के इस युग में जहां शारीरिक सुख बढ़े हैं, वहीं लोगों का जीवन तनावग्रस्त भी हुआ है। इस तनाव के वैसे तो कई कारण होते हैं, परंतु वास्तु सिद्धांतों के प्रतिकूल बना भवन भी इसका एक प्रमुख कारण होता है। पुराने समय में सभी घर लगभग आयताकार होते थे। घरों में आम तौर पर बोरिंग, पानी की भूमिगत टंकी, सेप्टिक टैंक इत्यादि नहीं होते थे। जमीन समतल हुआ करती थी। यही कारण था कि तब लोगों का जीवन इस तरह तनावग्रस्त नहीं हुआ करता था।
किसी भी भवन में प्राकृतिक शक्तियों का प्रवाह दिशा के अनुसार होता है अतः यदि भवन सही दिशा/दिशाओ में बना हो तो उस भवन में रहने वाला व्यक्ति प्राकृतिक शक्तियों का सही लाभ उठा सकेगा, किसकी भाग्य वृद्धि होगी। किसी भी भवन में कक्षों का दिशाओं के अनुसार स्थान इस प्रकार होता है।